अफ़सोस की हम क्यूँ खड़े हुए,
अफ़सोस की हम क्यूँ बड़े हुए,
अफ़सोस की क्यूँ चलना सीखा
अफ़सोस की क्यूँ बढ़ना सीखा,
अफ़सोस की हम क्यूँ बड़े हुए,
अफ़सोस की क्यूँ चलना सीखा
अफ़सोस की क्यूँ बढ़ना सीखा,
माटी से कपड़े सने हुए,होठों पर झरने सजे हुए
वो झरने आज भी साथ में हैं, लेकिन आँखों पर सजे हुए
वो झरने आज भी साथ में हैं, लेकिन आँखों पर सजे हुए
वो खेलना दिन भर सड़को पर, खुश होना हारे या जीतें,
खेला तो करते आज भी हैं,जीता भी अक्सर करते हैं,
अनजान कहाँ पर बैठी है, मुस्कान लबों की छुपी हुई,
खेला तो करते आज भी हैं,जीता भी अक्सर करते हैं,
अनजान कहाँ पर बैठी है, मुस्कान लबों की छुपी हुई,
ना समझ किसी भी बात की थी, फिर भी हम समझा करते थे
जो रूठ गया हमसे कोई, पल भर में खुश कर देते थे
और आज समझ इतनी है कि, कहते जिसको साथी है हम,
चोट उसी को देते हैं, अफ़सोस ज़रा ना करते हैं
जो रूठ गया हमसे कोई, पल भर में खुश कर देते थे
और आज समझ इतनी है कि, कहते जिसको साथी है हम,
चोट उसी को देते हैं, अफ़सोस ज़रा ना करते हैं
एक ख़त्म ना होने पाती है, वो दूसरी चाह सजाते हैं,
"ये मिला" मगर वो बात नहीं, "वो मिले" तो हमको होगी खुशी
"ये मिला" मगर वो बात नहीं, "वो मिले" तो हमको होगी खुशी
आ जाए वही दिन फिर वापस, ख्वाइश जहाँ पर एक ही थी,
शाम ढले बाहर जाना, वो खेलना चौक-चौराहे पर
वो दीप जले वापस आना, और करना मस्ती जी भरकर
वो माँ के हाथों का खाना, और प्यार वही सिरहाने पर..
वो दीप जले वापस आना, और करना मस्ती जी भरकर
वो माँ के हाथों का खाना, और प्यार वही सिरहाने पर..
सुख से ज़्यादा दुख देते हैं, चलने और बढ़ने की आदत,
शायद जीवन तब ख़त्म ही था, जब ख़त्म हुआ वो बचपन था........
शायद जीवन तब ख़त्म ही था, जब ख़त्म हुआ वो बचपन था........
kya baat hai. aap to hindi men bhi badhiya likhte hain.
ReplyDeleteJi han hindi aur english dono me!!!!
ReplyDelete