बहुत परेशां हो चूका हूँ
खुद को बहुत खो चूका हूँ
जिंदा रहने की जरुरत क्यूँ
हादसा ऐसा हुआ कुछ यूँ
पर कमजोर नहीं पडूंगा
बहुत गिर चूका हूँ, अब नहीं गिरूंगा
क्यूं सहारा लूँ किसी कमजोरी का
क्यूँ फेंकू चाभी अपनी तिजोरी का
बस एक बात का हमेशा रहेगा ग़म
ये दर्द बढ़ा ही ,कभी न हुआ कम
कि ,
जिल्लत है खुद पे की
बयां न कर पाया खुद को!!
No comments:
Post a Comment