राह पर चलते हैं सर उठाये
सबब क्या है इस रवैये में
नहीं जाना, न कोशिश थी कभी जानने की
दोस्तों में रहे ग़म छुपाये
किसीने ज़ेहेमत न ली मेरी खबर पूछने की
साथ ढूँढ़ते रहे सन्नाटे में
राह न मिली जो थी महफ़िल तक जाने की
खुदा पे भरोसा था हमको
मगर कभी न उस से फरियाद की
खूब जिए हैं ज़िन्दगी हम ?
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