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Tuesday, July 5, 2011

ग़ुम हो जाने दो

Just read a poem of my friend and soon I borrowed it from her to publish here..

आवाज़ ना दो हमको, ग़ुम हो जाने दो,ज़िंदगी के रंगो को आज़माने दो,

दुखते हैं मेरे पाँव इन सख्त राहो पर चलते-चलते,

अब कुछ देर इन्हे यूँ हि ठहर जाने दो,

आवाज़ ना दो हमको, ग़ुम हो जाने दो,

ना जाने ये धड़कने आज इतनी गुमसुम क्यों हैं,

रोको ना हमे अब ज़रा इन्हें मनाने दो,

हमें मालूम है कि इन आँखों मे ख्वाब ज्यादा हैं,

पर इन ख्वाबों मे आज सच को डूब जाने दो,

आवाज़ ना दो हमको, ग़ुम हो जाने दो,

रिश्तों कि राह में कैसे इतनी दूर हम आ गये,

पर हम इस काबिल नही, अब हमे लौट जाने दो,

आवाज़ ना दो हमको, ग़ुम हो जाने दो,

सितारो कि रोशनी मे हमे खोजने कि कोशिश ना करो,

अब इन्ही अंधेरो मे सिमट जाने दो,

इन आँखों में आज फिर कुछ बादल हैं,

छेड़ो ना इन्हे अब बरस भी जाने दो,

आवाज़ ना दो हमको, ग़ुम हो जाने दो……………

ज़िंदगी के रंगो को आज़माने दो………………

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